Ad

Genetic Engineering Appraisal Committee

अनुवांशिक रूप से संशोधित फसल (जेनेटिकली मोडिफाइड क्रॉप्स - Genetically Modified Crops)

अनुवांशिक रूप से संशोधित फसल (जेनेटिकली मोडिफाइड क्रॉप्स - Genetically Modified Crops)

एक समय विश्व व्यापार में होने वाले निर्यात में भारतीय कृषि की भूमिका चीन के बाद में दूसरे स्थान पर हुआ करती थी। हालांकि अभी भी कुछ फसलों के उत्पादन और निर्यात में भारत सर्वश्रेष्ठ स्थान पर है, परंतु अन्य फसलों में उत्पादकता बढ़ाने के लिए पिछले कुछ समय से भारतीय कृषि वैज्ञानिकों और विदेश के कई बड़े कृषि विश्वविद्यालयों की सहायता से आनुवांशिकरूप से संशोधित फसलें तैयार की जा रही है। इस प्रकार तैयार फसलों को 'जेनेटिकली मोडिफाइड क्रॉप्स' या 'जीएम फसल' (Genetically Modified Crops) भी कहा जाता है।

क्या होती है आनुवांशिक रूप से संशोधित फसल (What is Genetically Modified Crops) ?

इन फसलों को एक ऐसे पौधे से तैयार किया जाता है जिसकी जीन में आंशिक रूप से या फिर पूरी तरीके से परिवर्तन कर दिया जाता है। एक सामान्य पौधे की जीन में दूसरी पौधे की जीन को शामिल कर दिया जाता है। मुख्यतः यह कार्य इस प्राथमिक पौधे के कुछ गुणों को बदलने के लिए किया जाता है। इस तकनीक की मदद से पौधे की उत्पादकता को बहुत ही आसानी से बढ़ाया जा सकता है, साथ ही कई कीट और जीवाणुओं के प्रतिरोधक क्षमता भी तैयार की जाती है। अलग-अलग पौधों में होने वाले रोगों के खिलाफ प्रतिरोधी क्षमता का विकास भी जेनेटिकली मोडिफाइड विधि के तहत किया जाता है। 

जेनेटिकली मोडिफाइड (GM) फसल तैयार करने की विधियां तथा तकनीक:

वर्तमान में कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा अनुवांशिक रूप से संशोधित फ़सल तैयार करने के लिए अलग-अलग विधियों का इस्तेमाल किया जाता है। अमेरिका के खाद्य एवं ड्रग व्यवस्थापक संस्थान यानी
फ़ूड एण्ड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (FDA या USFDA - Food and Drug Administration Organisation) की तरफ से कुछ विधियों के बारे में जानकारियां उपलब्ध करवाई गई है, जो कि निम्न प्रकार है:- 

  • परंपरागत संशोधन विधि (Conventional Modification Method) :-

 इस विधि का इस्तेमाल प्राचीन काल से ही किसानों के द्वारा किया जा रहा है।परंपरागत संशोधित विधि के तहत एक ही पौधे की अलग-अलग ब्रीड को चुना जाता है और दोनों ब्रीड के मध्य पोलिनेशन करवाया जाता है। इस क्रॉस पोलीनेशन (Cross-pollination) से तैयार नई पौध तैयार पहले की तुलना में बेहतरीन उत्पादन करने के अलावा पोषक तत्वों की भी अच्छी गुणवत्ता उपलब्ध करवा सकती है। वर्तमान में किसानों के द्वारा उगाए जाने वाले लगभग सभी प्रकार के अनाज और फल-सब्जियां इसी परंपरागत संशोधित विधि से तैयार की हुई रहती है। 

  • जीन में बदलाव कर संशोधन करना :-

यह विधि डीएनए (DNA) की खोज के बाद शुरू हुई थी। वर्तमान में इस विधि के तहत जेनेटिक इंजीनियरिंग (Genetic Engineering) और जीनोम एडिटिंग (Genome Editing) जैसी दो विधियां आती है। 

  • पहली विधि में किसी एक बैक्टीरिया या वायरस की जीन को पौधे की जीन में सम्मिलित कर दिया जाता है। इस तरह तैयार यह नया पौधा भविष्य में इस वायरस या बैक्टीरिया से होने वाली बीमारियों के खिलाफ आसानी से प्रतिरोधी क्षमता तैयार कर सकता है।
  • जिनोम एडिटिंग विधि में किसी पौधे की जीन में से कुछ अनावश्यक जीन्स को हटाया जाता है। कई बार किसी पौधे की एक पूरी जीन के कुछ हिस्से की वजह से बीमारियां जल्दी लग सकती है, इसलिए इस विधि के तहत जीन के उस कमजोर हिस्से को काटकर अलग कर दिया जाता है और बाकी बची हुई जिन को पुनः जोड़ दिया जाता है।

भारत में कौन करता है जीएम फसलों को रेगुलेट (Regulate)?

किसी भी प्रकार की अनुवांशिक रूप से संशोधित फसल को मार्केट में बेचने और इस्तेमाल करने योग्य बनाने से पहले फसल तैयार करने वाली कम्पनी को सरकार के द्वारा अनुमति की आवश्यकता होती है। वर्तमान में यह अनुमति 'जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेजल कमेटी' (Genetic Engineering Appraisal Committee (GEAC)) के द्वारा दी जाती है। यह समिति पर्यावरण मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest and Climate Change) के अंतर्गत काम करती है। इस समिति से अनुमति मिल जाने के बाद पर्यावरण मंत्रालय के द्वारा अंतिम परमिशन प्रदान की जाती है  

वर्तमान में भारत में इस्तेमाल होने वाली जेनेटिक मॉडिफाइड फसलें :

पर्यावरण मंत्रालय और जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेजल समिति की वेबसाइट के अनुसार वर्तमान में भारत में केवल एक ही अनुवांशिक रूप से संशोधित फसल उगाने की अनुमति दी गई है। 

  • बीटी कॉटन (Bt-Cotton) :

महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और गुजरात में वर्तमान में इस्तेमाल की जा रही इस फसल की संशोधित किस्म को भारत सरकार के द्वारा 2002 में अनुमति प्रदान की गई थी। जेनेटिक इंजीनियरिंग विधि से तैयार की गई इस फसल में मिट्टी में पाया जाने वाला एक बैक्टीरिया Bacillus Thuringiensis की जीन को इस्तेमाल किया जाता है, जोकि कपास की सामान्य फसल को नुकसान पहुंचाने वाले गुलाबी रंग के कीड़े (Pink Bollworm) के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता तैयार करता है। कृषि मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में उत्पादित होने वाले कपास में केवल इसी एक कीड़े की वजह से ही लगभग 30 से 40 प्रतिशत कपास पूरी तरीके से अनुपयोगी हो जाती है। ये भी पढ़ें : पंजाबः पिंक बॉलवर्म, मौसम से नुकसान, विभागीय उदासीनता, फसल विविधीकरण से दूरी Ht-bt-cotton नाम से मार्केट में बेची जाने वाली अनुवांशिक रूप से संशोधित फसल में इस बैक्टीरिया के अलावा एक और अतिरिक्त जीन इस्तेमाल की जाती है, जो कि कपास के छोटे पौधे को खरपतवार को खत्म करने के लिए इस्तेमाल में आने वाले रासायनिक केमिकल Glyphosphosate से बचाने में मददगार होता है। 

  • बीटी ब्रिंजल (Bt-Brinjal ) :-

बैंगन की फसल में लगने वाले रोगों से बचाने के लिए तैयार की गई यह अनुवांशिक संशोधित फसल को शुरुआत में अप्रेजल समिति के द्वारा अनुमति दे दी गई थी, परंतु बाद में इस प्रकार तैयार फसल को खाने से होने वाले कई रोगों को मध्य नजर रखते हुए इस अनुमति को वापस ले लिया गया था। हाल ही में पर्यावरण के क्षेत्र में काम कर रहे कई एनजीओ (NGOs) के विरोध के बाद अनुवांशिक रूप से तैयार की गई मशरूम की संशोधित फ़सल के दैनिक इस्तेमाल पर भी रोक लगा दी गई है।  

जेनेटिकली मोडिफाइड फसलों से होने वाले फायदे :

अनुवांशिक रूप से संशोधित की हुई फसलें किसानों की आय को बढ़ाने और खर्चे को कम करने के अलावा कई दूसरे प्रकार के फायदे भी उपलब्ध करवा सकती है, जैसे कि स्वर्णिम चावल (Golden Rice) नाम की एक जेनेटिकली मोडिफाइड फ़सल स्वाद में बेहतरीन होने के अलावा परंपरागत चावल की खेती की तुलना में बहुत ही कम समय में पक कर तैयार हो जाती है।

ये भी पढ़ें: स्वर्ण शक्ति: धान की यह किस्म किसानों की तकदीर बदल देगी 

इसके अलावा अलग-अलग रोगों के साथ ही खरपतवार को नष्ट करने के लिए इस्तेमाल में आने वाले रासायनिक उर्वरकों के खिलाफ भी प्रतिरोधी क्षमता विकसित कर सकती है। इस प्रकार तैयार फसलों में पोषक तत्वों की मात्रा तो अधिक मिलती ही है, साथ ही रासायनिक उर्वरकों का भी कम इस्तेमाल करना पड़ता है, जिससे खेत की मृदा की गुणवत्ता भी बरकरार रहती है। यदि ऐसी फसलों को पशुओं को खिलाया जाए, तो पशुओं की प्रतिरक्षा प्रणाली भी मजबूत होती है और उनकी वृद्धि को भी बढ़ाया जा सकता है, जिससे पशुओं से अधिक मांस, अंडे और दूध प्राप्त किया जा सकता है। यदि बात करें पर्यावरणीय फायदों की, तो यह फसलें मिट्टी की उर्वरता को तो बढ़ाती ही है, साथ ही पानी के काफी कम इस्तेमाल में भी आसानी से बड़ी हो सकती है, इसीलिए रेगिस्तानी और कम बारिश होने वाले क्षेत्रों में इन फसलों का उत्पादन आसानी से किया जा सकता है। जेनेटिकली मोडिफाइड फसलों का इस्तेमाल प्राकृतिक खरपतवार नाशक के रूप में भी किया जा सकता है क्योंकि bt-cotton जैसी फ़सल में ऐसे बैक्टीरिया और वायरस की जीन का इस्तेमाल किया जाता है, जो कि पौधे के आसपास उगने वाली खरपतवार को पूरी तरीके से नष्ट कर सकती है। यदि बात करें किसानों के फायदे की तो इन फसलों की कम लागत पर अच्छी पैदावार की जा सकती है, क्योंकि कम सिंचाई और मृदा की कम देखभाल की वजह से खर्चे कम होने से से किसान का मुनाफा बढ़ने के साथ ही बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए भोजन की मांग की की पूर्ति भी सही समय पर की जा सकती है।

ये भी पढ़ें: गौमूत्र से बना ब्रम्हास्त्र और जीवामृत बढ़ा रहा फसल पैदावार

जेनेटिकली मोडिफाइड फसलों के इस्तेमाल से पहले रखें इन बातों का ध्यान:

अरुणाचल प्रदेश में कुछ किसानों के द्वारा सोयाबीन की अनुवांशिक रूप से संशोधित फसल का गैर कानूनी रूप से इस्तेमाल किया जा रहा था, हालांकि इसके इस्तेमाल से किसानों की आमदनी तो बढ़ी परंतु पूरी जांच पड़ताल ना करने और फसल को तैयार करने वाली कम्पनी के द्वारा भारतीय क्षेत्रों को ध्यान में रखकर संशोधन ना करने की वजह से उस क्षेत्र में पाई जाने वाली तितली की एक प्रजाति पूरी तरीके से खत्म हो चुकी है। ऐसा ही एक और उदाहरण गोल्डन चावल के रूप में भी देखा जा सकता है। भारत में पूरी तरीके से प्रतिबंधित चावल की अनुवांशिक रूप से संशोधित यह फसल महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के कुछ किसानों के द्वारा गैरकानूनी रूप से उत्पादित की जा रही है। केवल आमदनी बढ़ाने और जल्दी पक कर तैयार होने जैसे फायदों को ही ध्यान में रखते हुए इस फसल के द्वारा तैयार चावल के इस्तेमाल से होने वाले नुकसान पर कंपनी और किसानों के द्वारा कोई ध्यान नहीं दिया गया, जिसकी वजह से इसे खाने वाले लोगों में अंधापन और शरीर में कई दूसरी बीमारियों के अलावा मौत होने जैसी खबरें भी सामने आई है। इसीलिए आशा करते हैं कि हमारे किसान भाई ऊपर बताई गई दो घटनाओं से सीख ले पाएंगे और कभी भी गैरकानूनी रूप से अलग-अलग कंपनी के द्वारा बेचे जाने वाली जेनेटिकली मोडिफाइड फसलों का इस्तेमाल नहीं करेंगे। आशा करते है कि किसान भाइयों को Merikheti.com के द्वारा आनुवांशिक रूप से संशोधन कर प्राप्त की गई फसलों के बारे में पूरी जानकारी मिल गई होगी और भविष्य में बीटी-कॉटन और सरकार से अनुमति प्राप्त ऐसी फसलों का उत्पादन कर आप भी कम लागत पर अच्छा मुनाफा कमा पाएंगे।

भारी विरोध के बावजूद अगले 2 सालों में किसानों को मिल जाएगी जीएम सरसों

भारी विरोध के बावजूद अगले 2 सालों में किसानों को मिल जाएगी जीएम सरसों

जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (Genetic Engineering Appraisal Committee) ने भारत में व्यवसायिक खेती के लिए अनुवांशिक रूप से संशोधित (जीएम) सरसों को मंजूरी दे दी है। अगर सब कुछ ठीक रहा तो जल्द ही भारतीय किसान जीएम सरसों की खेती करने लगेंगे। इससे उत्पादन में बढ़ोत्तरी होगी साथ ही भारत सरकार की तिलहन के आयात पर निर्भरता भी कुछ हद तक कम हो जाएगी। इस आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) सरसों में थर्ड 'बार' जीन की मौजूदगी होगी। इससे इस फसल में ग्लूफोसिनेट अमोनियम का असर नहीं होगा।

क्या होती हैं आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) फसल

ऐसी फसलें जो वैज्ञानिक तरीके से रूपांतरित करके तैयार की जाती हैं, इन्हें अनुवांशिक रूप से संशोधित (जीएम) फसल (GM Crops) कहा जाता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस प्रकार की फसलों में पहले की अपेक्षा 30 प्रतिशत तक उत्पादन में बढ़ोत्तरी होती है। इसी के साथ ही ये बीज पर्यावरण के अनुकूल भी होते हैं। ये बीज किसी भी प्रकार से पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाते।

आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) फसलों का किसान संगठन कर रहे हैं विरोध

लंबे समय से भारत में आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) फसलों को लेकर बहस छिड़ी हुई है। जहां भारत सरकार इन फसलों को अनुमति प्रदान करके खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता का लक्ष्य हासिल करना चाहती है, तो वहीं दूसरी तरफ भारत के कुछ किसान संगठन इसका विरोध कर रहे हैं। इसके साथ ही कुछ विशेषज्ञों का इस मामले में कहना है कि भारत में आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) फसलों को अनुमति देना पूरी तरह से अवैज्ञानिक और गैर जिम्मेदाराना है। सरकार के ऐसे किसी भी कदम का जोरदार तरीके से विरोध किया जाएगा। अभी भी केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने जीएम सरसों को मंजूरी नहीं दी है। सरसों के साथ ही अभी तक आनुवंशिक रूप से संशोधित एचटीबीटी कॉटन को मंजूरी मिलने का इंतजार है।


ये भी पढ़ें: भारत में पहली बार जैविक कपास की किस्में हुईं विकसित, किसानों को कपास के बीजों की कमी से मिलेगा छुटकारा

आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) सरसों को मंजूरी देने से आयात पर घटेगी निर्भरता

भारत अपनी जरूरत का बहुत सारा तिलहन या खाद्य तेल आयात करता है। इसलिए सरकार नित नए प्रयास कर रही है ताकि खाद्य तेलों के मामले में भारत आत्मनिर्भर हो सके। भारत में अगर सरसों की विभिन्न प्रजातियों की प्रति हेक्टेयर उत्पादकता के बारे में बात की जाए, तो यह वैश्विक औसत उत्पादन से लगभग आधी है। दुनिया भर में एक हेक्टेयर में लगभग 2200 किलोग्राम सरसों का उत्पादन होता है तो वहीं भारत में प्रति हेक्टेयर सरसों का उत्पादन मात्र 1000 किलोग्राम ही है। देश में कुल तिलहनी फसलों में सरसों 40 प्रतिशत उगाई जाती है।

कृषि वैज्ञानिकों ने सरकार की इस पहल का किया स्वागत

आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) सरसों को मंजूरी मिलने पर कृषि वैज्ञानिकों ने स्वागत किया है। दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति  प्रो. दीपक पेंटल ने कहा है कि हमे ऐसे ओर भी कई परीक्षण करने की आवश्यकता है, ताकि ज्यादा से ज्यादा जीएम फसलों का निर्माण किया जा सके। इसके साथ ही भारत सरकार को प्रयोगशालाओं और कंपनियों की संख्या बढ़ाने की जरूरत है, ताकि जीएम फसलों का विकास और विपणन तेजी के साथ हो सके।


ये भी पढ़ें: अनुवांशिक रूप से संशोधित फसल (जेनेटिकली मोडिफाइड क्रॉप्स – Genetically Modified Crops)

किसानों के अलावा स्वदेशी जागरण मंच कर रहा है इन फसलों का विरोध

कुछ किसान संगठनों के अलावा स्वदेशी जागरण मंच सरकार के इस फ़ैसले का भरपूर विरोध कर रहा है। स्वदेशी जागरण मंच का कहना है कि आनुवंशिक रूप से संशोधित सरसों की यह किस्म बेहद खतरनाक है, इसलिए सरकार को इसकी खेती की अनुमति नहीं देनी चाहिए। स्वदेशी जागरण मंच ने सरकार से अनुरोध किया है कि इस पर तत्काल बैन लगाया जाना चाहिए। साथ ही मंच ने यह बात भी मानने से इनकार कर दिया कि यह किस्म भारत मे विकसित की गई है।